हिमाचल की सियासत में फिर सत्ता का केंद्र बनने लगा हाॅलीलाॅज

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संवाद भारत : कांग्रेस सत्ता में आएगी या नहीं 8 दिसंबर को पता चल ही जाएगा। परंतु मतगणना से पहले कांग्रेस नेताओं में जिस तरह का आपसी वाक युद्ध चल रहा है उससे यह तस्वीर तो साफ दिख रही है कि सत्ता में आने के बाद कांग्रेस को मुख्यमंत्री बनाने के लिए चुनावों से ज्यादा माथापच्ची करनी पड़ेगी।
तथ्यों की बात करें तो कांग्रेस में 40 वर्षों बाद नेतृत्व परिवर्तन का दावा करने वाले कांग्रेस चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू और मुख्यमंत्री बनने के लिए पहले विधायक बनना पड़ता है कहने वाले नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री का दावा तब हवा हवाई हो गया जब पार्टी हाईकमान ने नेताओं की आपसी खींचतान को देखकर प्रतिभा सिंह को पहले सांसद लड़वाया और फिर प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी।
मतदान से पहले और बाद में सुखविंदर सिंह सुक्खू ने एक और दावा पेश किया की चुने हुए विधायकों में से ही मुख्यमंत्री बनेगा। लेकिन उनका यह दावा भी तब रेत की तरह हाथ से फिसलता नज़र आया जब शिमला ग्रामीण के विधायक और प्रत्याशी विक्रमादित्य सिंह ने सिंह ने कहा की जरूरी नहीं चुने हुए विधायकों में से ही कोई मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री तो कोई सांसद भी बन सकता है, उदाहरण देते हुए विक्रमादित्य सिंह ने आगे कहा पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भी सांसद रहते ही मुख्यमंत्री बने थे।
अगर मीडिया चैनलों की बात करें तो भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर बताई जा रही है। परंतु हकीकत यह भी है कि भाजपा कम में भी सरकार ढूंढ रही है और कांग्रेस बहुत में भी खतरे में दिख रही है।
निष्कर्ष यह निकलता दिख रहा है कि, अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो नेताओं की आपसी लड़ाई का एक हल ये भी है कि कहीं हाईकमान बीच का रास्ता निकालते हुए फिर एक बार प्रतिभा सिंह को बड़ी जिम्मेदारी के रूप में मुख्यमंत्री पद न सौंप दे। क्योंकि वीरभद्र सिंह के खास रहे कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और सुजानपुर से पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को हराने वाले राजेन्द्र पहले ही कह चुने हैं कि वे इस पद हेतु प्रतिभा सिंह की वकालत करेंगे। इसके अलावा राज्य के कई बड़े अधिकारियों और कांग्रेस के नेताओं ने भी अपने लिए बड़ी जिम्मेदारी की चाह में हाॅलीलाॅज का रास्ता नापना शुरु कर दिया है।

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