बचपन बहुत सारी ऊर्जा लिए, मासूमियत, खेलकूद व शरारतों से भरा होता है। इसी समय में सीखी गई बातें जीवन की नींव बनती हैं। बच्चे का मन कोरी स्लेट की तरह होता है। उन्हें जैसे संस्कार और व्यवहार मिलता है, उसी से उस बच्चे के जीवन में उसका व्यवहार और विचार प्रभावित होते हैं। इसी समय में शारीरिक व मानसिक विकास होता है, इसलिए हर बच्चे को स्वस्थ, समृद्ध व संस्कार पूर्ण बचपन देना उसका अधिकार है।
हमारे प्रदेश हिमाचल को सशक्त ही नहीं, बल्कि संवेदनशील, स्नेहिल एवं आत्मीय बनाने की भी जरूरत है, इस दिशा में हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने अनूठी एवं प्रेरक पहल की है। मुख्यमंत्री
सुखविंदर सिंह सुक्खू जी ने अनाथ बच्चों का सहारा बनने के लिए नव वर्ष का तोहफा देते हुए एक कल्याणकारी योजना की घोषणा की है। इस योजना का नाम मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना रखा गया है।
कहते हैं कि जिसका कोई नहीं होता, उसका भगवान होता है। मग़र ऐसे जन-कल्याणकारी आयाम के साथ परोपकार, वास्तविक जनसेवा एवं जनता के दुःख-दर्द को बांटने के लिये जो सरकार तत्पर होती है तो वह भगवान से कम नहीं होती। अनाथ एवं बेसहारा बच्चों को घर जैसा वातावरण मिले, स्नेह की छाँव मिले, अपनापन का स्पर्श मिले, इस दृष्टि से बालाश्रमों का रख रखाव हो। सरकार एवं समाज के माध्यम से अगर यह सब सम्भव हो जाए तो इन बच्चों के अभावों, दुःख-दर्दों, पीड़ाओं को दूर कर उन्हें भारत का श्रेष्ठ नागरिक बनाया जा सकता है। सरकार के साथ-साथ कई एन.जी.ओ. (गैर सरकारी संगठन) ने भी अनाथ बच्चों के पालन-पोषण का जिम्मा लेकर अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।
जब प्रदेश सरकार एवं उनका नेतृत्व करने वाले शीर्ष नेताओं के विचारों में गहनता एवं मानवीयता हो, व्यवहार एवं शासन-प्रक्रिया में संवेदनशीलता प्रकट हो, कर्म एवं योजनाओं की दिशाएं लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तत्पर हों, तब यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ऐसी सरकार की शासन-व्यवस्था हमारे वक्त का सौभाग्य है। इसी सौभाग्य का सूरज हैं- मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू जी, औऱ उनके द्वारा की गई अनाथ बच्चों के लिए नई योजना की घोषणा।
मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने के पहले दिन ही श्री सुखविंदर सिंह सुक्खू जी शिमला में बालिका देखभाल संस्था, टूटीकंडी का दौरा करने गए थे औऱ इस संस्थान से संबंधित विभाग की कार्य प्रणाली को जाना था। कुछ दिन बाद मुख्यमंत्री ने गणमान्य व्यक्तियों के साथ एक बैठक की औऱ अनाथ बच्चों के लिए कल्याणकारी योजना कार्यन्वित करने का विचार सभी के समक्ष प्रस्तुत किया।
सब नीति निर्धारकों का यह मत था कि ऐसी योजना लाई जाए जो सभी तरह के बंधनों से दूर हो। हिमाचल में करीब 6 हजार बच्चे अनाथाश्रमों में पल -बढ़ रहे हैं।
12वीं तक तो प्रदेश सरकार उनको आश्रय देती है। इस योजना के अंतर्गत यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अगर कोई अनाथ बच्चा कक्षा 12वीं के बाद आगे पढ़ना चाहता है तो उसको किसी भी तरह की दिक्कत नहीं आनी चाहिए। इस योजना के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश की सरकार ने एक कोष स्थापित करने का फैसला लिया है। जिसका नाम मुख्यमंत्री सुखाश्रय कोष रखा गया है । इसके लिए 101 करोड़ के बजट का तुरंत प्रावधान किया जाएगा। सामाजिक कल्याण विभाग को इस कोष की नोडल एजेंसी बनाया गया है। साधारण आवेदन पर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग द्वारा संपूर्ण सहायता त्वरित रूप से सीधे लाभार्थी के खाते में दी जाएगी।
विधायकों से भी इस कोष के लिए आर्थिक सहायता ली जाएगी। सभी कांग्रेस विधायक पहली तनख्वाह से एक लाख रुपये इस कोष में दान करेंगे। विपक्ष के विधायकों से भी इसके लिए अनुरोध किया जाएगा। इस कोष से कुछ धनराशि को एकल नारियों के उत्थान पर भी खर्च किया जाएगा।
इस कोष से सहायता प्राप्त करना सरकारी बंधनों से मुक्त होगा और इनसे कोई आय प्रमाण-पत्र भी नहीं लिया जाएगा।
इस योजना में यह प्रावधान किया जाएगा कि जो भी अनाथ बच्चा पढ़ाई या संबंधित कोई भी कोर्स करना चाहता हो तो उसे उस पढ़ाई से वंचित नहीं किया जाएगा। सरकार इंजीनियरिंग, आईआईटी, आईआईएम, बीबीए एमबीए जैसे पाठ्यक्रमों में बच्चों की पढ़ाई कराएगी। इस पढ़ाई का सारा खर्च सरकार उठाएगी। इन बच्चों को जेब खर्च को भी पैसे दिए जाएंगे।
अनाथ बच्चों के कल्याण के लिए मुख्यमंत्री कितने संवेदनशील हैं इस बात का पता उनके इस वक्तव्य से ही लगाया जा सकता है, जब मुख्यमंत्री ने बताया कि उन्हें अनाथ बच्चों के लिए काम करने की प्रेरणा उनके खुद के बचपन से मिली है। जब वर्तमान के मुख्यमंत्री अपनी युवावस्था में कालेज में पढ़ते थे, तो उनके साथ उनके एक मित्र भी थे, जो अनाथ आश्रम में रहते थे। उसी समय से मुख्यमंत्री के मन में यह भाव था कि कभी अवसर मिला, तो अनाथ या बेसहारा बच्चों के कल्याण के लिए कदम उठाऊंगा। इसी कड़ी में सुखाश्रय कोष की स्थापना की गयी है।
हमारा देश शुरुआत से ही बच्चों के अधिकारों, समानता और उनके विकास के लिए प्रतिबद्ध रहा है।
इसके लिए भारतीय संविधान में सभी बच्चों के लिए कुछ खास अधिकार सुनिश्चित किये गये हैं जैसे अनुच्छेद 21-क में 6 से 14 साल की आयु वाले सभी बच्चों की अनिवार्य और निःशुल्क प्रारंभिक शिक्षा का प्रावधान किया गया है। अनुच्छेद 39(च) में बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय माहौल में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएँ मुहैया कराना और शोषण से बचाने का प्रावधान किया गया है।
बचपन को जीवन का स्वर्णिम समय माना जाता है। कानूनों एवं योजनाओं की सफलता के लिए आवश्यक है कि बच्चों के अधिकारों और समस्याओं के प्रति सामाजिक जागरूकता को बढ़ाया जाए। बच्चे किसी भी देश के विकास की नींव होते हैं। अगर हमें अपना भविष्य संवारना है तो सभी बच्चों को तंदुरुस्त और साक्षर बनाना होगा।
इस लेख के माध्यम से दानी सज्जनों से मेरी अपील रहेगी कि वो अनाथ बच्चों की मदद के लिए आगे आएं। विभिन्न कंपनियों से भी करबद्ध अनुरोध है कि वे इस पुण्यकार्य के लिए सरकार के साथ कदम से कदम मिला कर चलें औऱ सीएसआर के अंतर्गत अनाथ बच्चों के लिए आर्थिक सहायता देने का प्रयास करें, ताकि देखभाल एवं संरक्षण वाले सभी कमजोर वर्गों को सरकार की ओर से अच्छी और उच्च गुणवत्तापूर्ण सुविधाएं दी जा सकें।
हमें मुख्यमंत्री के स्वर में अपना स्वर मिलाते हुए इन अनाथ बच्चों के खुशहाल बचपन को जीवंत करने के लिये प्रयत्नशील होना चाहिए। एक-एक बच्चे तक मदद पहुंचाने की सरकार की कोशिश तभी कामयाब होगी, जब समाज के नागरिकों के साथ-साथ अधिकारी भी पूरी ईमानदारी से अनाथ बच्चों का सहारा बनेंगे।
योजना की सफलता इसी में है कि हर जरूरतमंद बच्चे तक मदद, स्नेह औऱ सहारा पहुंचे।