संवाद भारत : रख हौसला वो मंजर भी आएगा प्यासे के पास चल कर समंदर भी आएगा, ऐसा ही जज्बा है व्हीलचेयर से चलने वाले पैरा ओलंपियन वीर बहादुर गुरंग का। जिनको सम्मानित करने भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू स्वयं चल कर आईं और उन्हें ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित किया। यह क्षण सभी के लिए प्रेरणादाई था। गुरंग ने 1980 के दशक में पैरा स्पोर्ट्स में प्रतिस्पर्धा शुरू की थी। गुरंग का अपना परिवार नहीं है वह गोरखा रेजीमेंट को ही अपना परिवार मानते हैं।1983 में उत्तरी भारत में ड्यूटी के दौरान गुरुंग घायल हो गए थे। सेना में सेवा के दौरान उन को लकवा मार गया था। उस दौरान ट्रक के चालक ने नियंत्रण खो दिया था, उनकी इकाई गोला बारूद का परिवहन कर रही थी , उनकी रीड की हड्डी टूट गई थी, खोपड़ी में फैक्चर हो गया था, हादसे में यूनिट के 4 जवानों की मौत भी हो गई थी, ऐसे में उस समय उन्होंने स्वयं कहा था कि मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं कभी खुद भी चल पाऊंगा लेकिन मैंने हिम्मत नहीं छोड़ी। गुरुंग ने कहा था पैरा स्पोर्ट्स में प्रतिस्पर्धा करना मेरे लिए बेहद गर्व की बात है अनुभव साझा करना और दूसरों को प्रेरित करना उन्हें आंतरिक संतुष्टि देता है।